हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर…..कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने
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उन चराग़ों में
उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे|
कभी ये लगता है
कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं
खो गई है मंजिलें
खो गई है मंजिलें, मिट गए हैं रस्ते, गर्दिशें ही गर्दिशें, अब है मेरे वास्ते |
मनाने की कोशिश
मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|
जब तक बिके न थे
जब तक बिके न थे हम, कोई हमें पूछता न था, तूने खरीद के हमें, अनमोल कर दिया |
ताल्लुक़ कौन रखता है
ताल्लुक़ कौन रखता है किसी नाकाम से…! लेकिन, मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं…! मेरी खूबी पे रहते हैं यहां, अहल-ए-ज़बां ख़ामोश…! मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो, गूंगे बोल पड़ते हैं…!!
जो भी आता है
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज बट न जाए तिरा बीमार मसीहाओं में
ख़्वाबों को इश्क़ का
ख़्वाबों को इश्क़ का एक जहाँ देते है, चलो के अब नींद को आँखों में पनाह देते है…
मेरी वफ़ा का
मेरी वफ़ा का कभी इम्तिहान मत लेना की मेरे दिल को तेरे लिए हारने की आदत है…..