कहाँ मिलता है

कहाँ मिलता है कोई समझने वाला जो भी मिलता है, समझाकर चला जाता है…

लोग कहते हैं

लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं, मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर….

खामोश रहने दो

खामोश रहने दो लफ़्ज़ों को, आँखों को बयाँ करने दो हकीकत, अश्क जब निकलेंगे झील के, मुक़द्दर से जल जायेंगे अफसाने..

मैं मुसाफ़िर हूँ

मैं मुसाफ़िर हूँ ख़तायें भी हुई होंगी मुझसे, तुम तराज़ू में मग़र मेरे पाँव के छाले रखना..

आज़ाद कर दिया

आज़ाद कर दिया हमने भी उस पंछी को, जो हमारी दिल की कैद में रहने को तोहीन समजता था ..

परिन्दों की फिदरत से

परिन्दों की फिदरत से आये थे वो मेरे दिल में , जरा पंख निकल आये तो आशियाना छोड़ दिया ..

वो जब अपने हाथो की

वो जब अपने हाथो की लकीरों में मेरा नाम ढूंढ कर थक गये, सर झुकाकर बोले, लकीरें झूठ बोलती है तुम सिर्फ मेरे हो..

कल बड़ा शोर था

कल बड़ा शोर था मयखाने में, बहस छिड़ी थी जाम कौन सा बेहतरीन है, हमने तेरे होठों का ज़िक्र किया, और बहस खतम हुयी..

चलो तुम रास्ते ख़ोजो

चलो तुम रास्ते ख़ोजो बिछड़ने के, हम माहौल पैदा करते है मिलने के !!

सूरज रोज़ अब भी

सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है …. तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …

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