काश..! निगाहे फेर लेने से… ताल्लुक भी खत्म हो जाते..!!
Tag: व्यंग्य
मेरा भी वक्त आएगा
छत , इतवार , परिंदे , पेड , किताब , कलम , शाम … मैंने कहा था ना मेरा भी वक्त आएगा .!!
खुल सकती हैं
खुल सकती हैं रुमाल की गांठें बस ज़रा से जतन से मगर, लोग कैंचियां चला कर, सारा फ़साना बदल देते हैं.. !!!
अपना क्या है
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ
गुलाबों को नहीं
गुलाबों को नहीं आया अभी तक इस तरह खिलना.., सुबह को जिस तरह वो नींद से बे’दार होती है….
जिंदगी पर बस
जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं…. बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे…. पर बहुत कमजोर लोगों से…..
रिवाज़ ही बदल गए
सुना था वफा मिला करती हैं मोहब्बत में…. हमारी बारी आई तो रिवाज़ ही बदल गए …
दिल बेजुबान है
दिल बेजुबान है तो क्या, तुम यूँ ही तोड़ते रहोगे..?!
कागज़ की नाव
बस इतनी सी बात समंदर को खल गईं, एक कागज़ की नाव मुझ पर कैसे चल गई!
मुझे बदल दिया
तुझे शिकायत है कि मुझे बदल दिया वक़्त ने…!कभी खुद से भी सवाल कर’क्या तूं वही है’…….?