बिल्कुल जुदा है

बिल्कुल जुदा है मेरे महबूब की सादगी का अंदाज, नजरे भी मुझ पर है और नफरत भी मुझ ही से…

सूखे पत्तो सी

सूखे पत्तो सी थी जिंदगानी हमारी . लोगो ने समेटा भी तो जलाने के लिए

मुझमे कितनी रौनके

है दफ़न मुझमे कितनी रौनके मत पूछ ऐ दोस्त….. हर बार उजड़ के भी बस्ता रहा वो शहर हूँ मैं!

मेरी रूह को

मेरी रूह को छू लेने के लिए बस कुछ लफ़्ज़ ही काफ़ी हैं…… कह दो बस इतना कि तेरे साथ जीना अभी बाक़ी है…!

सफर तो लिखा हैं

अजब पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की इन लकीरों में… सफर तो लिखा हैं मगर मंजिलों का निशान नहीं ….!!!

गिरना ही था

गिरना ही था तुमको तो सौ मुकाम थे, ये क्या किया के नज़रो से ही गिर गयी ?

आग लगाते है

मौसम बहुत सर्द है चल ए दोस्त … गलतफहमियो को.. आग लगाते है

आज भी अधूरी है

तलाश दिल की आज भी अधूरी है…, जीने के लिए साँसों से ज्यादा आज भी तू जरूरी है…!

तूने तो कह दिया

तूने तो कह दिया, अब तेरा मेरा कोई वास्ता नहीं हैं, फिर भी अगर तू आना चाहे, तो रास्ता वही हैं ..!!

जवाब तो बहुत हैं

चलती हुई “कहानियों” के जवाब तो बहुत हैं मेरे पास… लेकिन खत्म हुए “किस्सों” की खामोशी ही बेहतर है…

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