वफा की बात चली तो कुछ रंज पुराने याद आए दर्द के बिस्तर और वो भीगे सिरहाने याद आए!!
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बांसुरी से सिख
बांसुरी से सिख ले, एक नया सबक ऐ-जिन्दगी, लाख सीने में जख्म हो, फिर भी गुनगुनाती है
होठों पर रह जाए
वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए, वो ख़ुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए, कभी तो समझो मेरी ख़ामोशी को, वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जाए
जिन्दगी मुश्किल थी
वादा करके और भी आफत में डाला आपने.. जिन्दगी मुश्किल थी, अब मरना भी मुश्किल हो गया..!
गैर अजीज है
वह हजार दुश्मने-जाँ सही मुझे फिर भी गैर अजीज है.. जिसे खाके-पा तेरी छू गई, वह बुरा भी हो तो बुरा नही..!” खाके-पा – पांव की धूल
तेरे इन्तिजार में..!
हम कब के मर चुके थे जुदाई में ऐ अजल.. जीना पड़ा कुछ और तेरे इन्तिजार में..!
उनके इश्क में हैं
हम उनके इश्क में हैं इस कदर गैर-हाल.. कि जिस तरह कोई गर्के-शराब होता है..!
सामने बैठे हुए हैं
वह मेरे सामने बैठे हुए हैं.. मगर यह फासिला भी कम नहीं..!
बड़े हो जाते हैं
झगड़े भी बच्चों की तरह होते हैं , पालते रहे तो बड़े हो जाते हैं…
एक निगाह का हक़
हर नज़र को एक निगाह का हक़ है, हर नूर को एक आह का हक़ है, हम भी दिल लेकर आये है इस दुनिया में, हमे भी तो एक गुनाह करने का हक़ है