पेड़ भूडा ही सही

पेड़ भूडा ही सही घर मे लगा रहने दो, फल ना सही छाँव तो देगा

मैं एक ताज़ा कहानी

मैं एक ताज़ा कहानी लिख रहा हूँ,मगर यादें पुरानी लिख रहा हूँ …

एक पहचानें कदमों की

एक पहचानें कदमों की आहट फिर से लौट रही है, उलझन में हूँ जिंदगी मुस्कराती हुई क्यूँ रूबरू हो रही है…

उसे जाने को जल्दी थी

उसे जाने को जल्दी थी सो मैं आँखों ही आँखों में, जहां तक छोड़ सकता था वहाँ तक छोड़ आया हूँ…

हर रोज़ दरवाजे

हर रोज़ दरवाजे के नीचे से सरक कर आती है सारे जहान की ख़बरें… एक तेरा हाल ही जानना इतना मुश्किल क्यूं है…

रूह तो जिसकी थी

रूह तो जिसकी थी वो ले गया,जिस्म के दावेदार यहाँ हज़ारों हैं!

ज़हर लगते हो

ज़हर लगते हो तुम मुझे जी करता है खा कर मर जाऊँ!

यादों की हवा

यादों की हवा चल रही है शायद आँसुओं की बरसात होगी!

सन्नाटा छा गया

सन्नाटा छा गया बँटवारे के किस्से में, जब माँ ने पूँछा- मैं हूँ किसके हिस्से में

मैं पेड़ हूं

मैं पेड़ हूं हर रोज़ गिरते हैं पत्ते मेरे ,फिर भी हवाओं से,, बदलते नहीं रिश्ते मेरे

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