लतीफे छेड़ कर मैं

लतीफे छेड़ कर मैं अपनी माँ को जब हंसाता हूँ मुझे महसूस होता है कि जन्नत मुस्कुराती है

हो सके तो रहना…

हो सके तो रहना… तुम साथ मेरे हो बुरे या अच्छे… हालात मेरे

कभी साथ बैठो तो कहूँ

कभी साथ बैठो तो कहूँ क्या दर्द है मेरा..अब तुम दूर से पूछोगे तो सब बढ़िया ही कहूँगा…

तुमको देखा तो मौहब्बत भी

तुमको देखा तो मौहब्बत भी समझ आई वरना इस शब्द की तारीफ ही सुना करते थे…!!

सब्र तहजीब है

सब्र तहजीब है मोहब्बत की साहब, और तुम समझते हो की बेजुबान है हम!!

कुछ और भी हैं

कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ, कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे

रोज़ आते है

रोज़ आते है बादल अब्र ए रहेमत लेकर मेरे शहर के आमाल उन्हे बरसने नही देते|

मेरा दिल चाँद जेसा

मेरा दिल चाँद जेसा कैसे हो जिन्दगी ने रहो में कई आफताब खड़े किये

न जाने किसने

न जाने किसने, पढ़ी है मेरे हक़ में दुआ… आज तबियत में जरा आराम सा है…

तुझे रात भर

तुझे रात भर ऐसे याद करता हूँ मैं जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।

Exit mobile version