माँ के पैरो से

न अपनों से खुलता है, न ही गैरों से खुलता है. ये जन्नत का दरवाज़ा है, माँ के पैरो से खुलता है.!!

जिस का अंत नहीं

ऊपर जिस का अंत नहीं उसे आसमान कहते है, जहान में जिस का अंत नहीं उसे माँ कहते है

माँ के प्यार में

दौलत छोड़ी दुनिया छोड़ी सारा खज़ाना छोड़ दिया; माँ के प्यार में दीवानों ने राज घराना छोड़ दिया; . दरवाज़े पे जब लिखा हमने नाम अपनी माँ का; मुसीबत ने दरवाज़े पे आना छोड़ दिया।

उठाया गोद में

बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ, उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ

तुम्हें ग़ैरों से कब

तुम्हें ग़ैरों से कब फुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली.

मैं डूबता हूँ

ना जाने किसकी दुआओं का फैज़ है मुझपर, मैं डूबता हूँ और दरिया उछाल देता है..

शर्म आती है

जब कभी खुद की हरकतों पर शर्म आती है ….. चुपके से भगवान को भोग खिला देता हूँ …..

ये तेरा अकड़

ये तेरा अकड़ तो दो दिन की कहानी है । पर मेरा attitude तो खानदानी है।

कुछ तो संभाल के

कुछ तो संभाल के रखती , देखो मुझे भी खो दिया तुमने….

कम बिकता हूं

छोटे शहर के अखबार जैसा हूं मैं,, दिल से लिखता हूं, शायद इसलिए कम बिकता हूं..!

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