हर एक शख़्स

हर एक शख़्स की अपनी ही एक मंज़िल है, कोई किसी का यहाँ हम-सफ़र नहीं होता…

सितम की रस्में

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले; सज़ा खता-ए-नज़र से पहले, इताब ज़ुर्मे-सुखन से पहले; जो चल सको तो चलो के राहे-वफा बहुत मुख्तसर हुई है; मुक़ाम है अब कोई न मंजिल, फराज़े-दारो-रसन से पहले।

रिश्ते संजोने के लिए

रिश्ते संजोने के लिए मैं झुकता रहा, और लोगों ने इसे मेरी औकात समझ लिया…

कोई खो के मिल गया

कोई खो के मिल गया तो कोई मिल के खो गया… ज़िंदगी हम को बस ऐसे ही आज़माती रही …!!

जिनकी शायरियो में

जिनकी शायरियो में होती है सिसकिया, वो शायर नहीं किसी बेवफा के दीवाने होते है !

हमको ख़ुशी मिल भी गई

हमको ख़ुशी मिल भी गई तो कहा रखेगे हम आँखों में हसरतें है तो दिल में किसी का गम

वो जिसका बच्चा

वो जिसका बच्चा आठों पहर से भूखा हो बता खुदा वो गुनाह न करे तो क्या करे|

उसकी जीत से

उसकी जीत से होती हे ख़ुशी मुझको….! यही जवाब मेरे पास अपनी हार का था ….

हम ने कब माँगा है

हम ने कब माँगा है तुम से अपनी वफ़ाओं का सिला बस दर्द देते रहा करो “मोहब्बत” बढ़ती जाएगी|

कुछ ना कर सकोगे

कुछ ना कर सकोगे मेरा मुझसे दुश्मनी करके, मोहब्बत कर लो मुझसे अगर मुझे मिटाना ही चाहते हो तो…

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