सर क़लम होंगे

सर क़लम होंगे कल यहाँ उन के जिन के मुँह में ज़बान बाक़ी है|

तेरा प्यार मुझको

तेरा प्यार मुझको तड़पाता ही रहता है! तेरा ख्वाब मुझको तरसाता ही रहता है! बन चुकी है जिन्द़गी जुल्मों-सितम की यादें, मेरा नसीब मुझको तो रुलाता ही रहता है!

एक उम्र है

एक उम्र है जो तेरे बगैर गुजारनी है., और एक लम्हा है जो तेरे बगैर गुजरता नहीं……….

अमल से ज़िंदगी

अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है|

अक्ल के पास

अक्ल के पास खबर के सिवा कुछ भी नही ।तेरा इलाज नजर के सिवा कुछ भी नही।

थी विरह की रात

थी विरह की रात वो और दर्द बेशुमार था…!!! रोते रोते हँस दिया न जाने कैसा प्यार था…!!!

कुछ चुप सा रहता है

वो कुछ चुप सा रहता है ..थोड़ा मशरुफ सा रहता है..पुरानी फितरत है ‘शेखर’ वो अब भी थोड़ा दुर सा रहता है..।

ज़िन्दगी जब चुप सी

ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है मेरे खामोश सवालो पर तब दिल की जुबाँ स्याही से पन्नें सजाती है|

नाउम्मीदी में बिखर जाओ तो

नाउम्मीदी में बिखर जाओ तो बटोर लो खुद को कि अँधेरी रात के हिस्से में भी एक चाँद होता है।

अब ये न पूछना की..

अब ये न पूछना की.. ये अल्फ़ाज़ कहाँ सेलाता हूँ, कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के, कुछ अपनी सुनाता हूँ|

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