सामने बैठे हुए हैं

वह मेरे सामने बैठे हुए हैं.. मगर यह फासिला भी कम नहीं..!

बड़े हो जाते हैं

झगड़े भी बच्चों की तरह होते हैं , पालते रहे तो बड़े हो जाते हैं…

एक निगाह का हक़

हर नज़र को एक निगाह का हक़ है, हर नूर को एक आह का हक़ है, हम भी दिल लेकर आये है इस दुनिया में, हमे भी तो एक गुनाह करने का हक़ है

दरद बयां कर देगे

सोचा सारा दरद बयां कर देगे उनके आगे … और उसने ये भी ना पूछा इतने उदास कयों हौ

यही देना मुनासिब है

नसीहत अब बुजुर्गों को यही देना मुनासिब है, जियादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं।

आसुंओं के धुंध

यूँ तो मेरी रगे-जाँ से भी थे नजदीकतर.. आसुंओं के धुंध में लेकिन न पहचाने गये..!

यूँ मुतमइन आये हैं

यूँ मुतमइन आये हैं खाकर जिगर पै चोट.. जैसे वहाँ गये थे इसी मुद्दआ के साथ..!

यह सब तस्लीम है

यह सब तस्लीम है मुझको मगर ऐ दावरे-मशहर.. मुहब्बत के सिवा जुर्मे-मुहब्बत की सजा क्या है..!

नाम आता है..!

यह महवीयत का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ.. जुबाँ पर बेतहाशा आप ही का नाम आता है..!

करम का जुहूर था..

मौकूफ र्म ही पै करम का जुहूर था.. बन्दा अगर कुसूर न करता, गुनाह था..!

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