इश्क ही दीवानगी

इश्क ही दीवानगी और इश्क ही इबादत भी मेरी…. अब जिसको करूँ मै सजदा वो ही खुदा-ओ-खुदाई मेरी….!!!!

दोनों काफी है

इक महबूब बेपरवाह , इक मुहब्बत बेपनाह, दोनों काफी है सुकून बर्बाद करने को…..

सोज़-ए-निहाँ

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए,हम नज़र तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए… ना-मुरादी अपनी किस्मत गुमराही अपना नसीब,कारवाँ की खैर हो हम कारवाँ तक आ गए..

किसी ने हाथ मेरा

पकड़ लिया सरे-महसर किसी ने हाथ मेरा…. लो मिल गई अपनी वफा की दीद मुझकों….!!!!!!

प्यार के ख़त

कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई,आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई… ‘पास-बुक’ पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है,प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई..

सिर्फ आँखों को

सिर्फ आँखों को देखकर कर ली मोहब्बत तुमसे, छोड़ दिया अपना मुकद्दर,तेरे नकाब के पीछे….

जो दिल को

जो दिल को अच्छा लगता है, उसी को अपना कहता हूँ ,मुऩाफा देखकर रिश्तो की सियासत नहीं करता!!

हवा ही बना दे

ऐ खुदा कुछ और नही पल भर के लिए हवा ही बना दे… कसम से सिर्फ उसे “छु” कर लौट आऊँगा…..

समझ नहीं आता

समझ  नहीं आता जिंदगी तेरा फैसला, एक तरफ तू कहती है, “सबर का फल मीठा होता है” और दूसरी तरफ कहती हो की “वक्त किसी का इंतजार नहीं करता

ज़रा अपना ख्याल रखना दोस्तों…

ज़रा अपना ख्याल रखना दोस्तों… सुना है इश्क इसी महिने में शिकार करता है…

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