मुहब्बत उठ गयी

मुहब्बत उठ गयी दोनों घरों से…. सुना है एक ख़त पकड़ा गया है…

किसी के होठों पे

किसी के होठों पे रूकी हुई बात बन कर, रात ठहरी हो जैसे|

जरा थमे जो

जरा थमे जो यह तूफां तो हो कुछ अन्दाजा, कहाँ हूँ मैं कहाँ कश्ती, कहाँ किनारा है।

मुझसे दूर जाते हुए

मुझसे दूर जाते हुए वो खुद को मेरे पास ही छोड़ गये उसे तो बिछड़ने का सलीका भी नही आता|

ज़ख्म छुपाने के लिए

ज़ख्म छुपाने के लिए बहाना चाहिए., दर्द सुनाने के लिए ज़माना चाहिए.. हर शख्स करीब आकर चला जाता है., वो ही नही आते जिनको आना चाहिए..

मेरी खासियत को

मेरी खासियत को जान कर चाहा तो क्या चाहा तुमने… तुम मेरे हो अगर तो,मुझे बुरा मान कर भी चाहो….

इस तरह तुमने

इस तरह तुमने मुझे छोड़ दिया… जेसे रास्ता कोई गुनाह का हो….

मुझसे जब भी मिलो

मुझसे जब भी मिलो तो नज़रें उठा के मिला करो, मुझे पसंद है अपने आप को तेरी आँखों में देखना..

वक्त के दरवाजे पर

वक्त के दरवाजे पर खड़ा हूँ मैं, कभी तो मेरा भी आएगा !!

पसंद ना आये

पसंद ना आये मेरा साथ , तो बता देना, महसूस भी न कर पाओगे , उतना दूर चला जाऊंगा|

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