मुख्तसर सी जिंदगी

मुख्तसर सी जिंदगी मेरी तेरे बिन बहुत अधूरी है, इक बार फिर से सोच तो सही की क्या तेरा खफा रहना बहुत जरूरी है …

दर्द दे गए

दर्द दे गए सितम भी दे गए.. ज़ख़्म के साथ वो मरहम भी दे गए, दो लफ़्ज़ों से कर गए अपना मन हल्का, और हमें कभी न रोने की क़सम दे गए|

अनदेखे धागों में

अनदेखे धागों में, यूं बाँध गया कोई की वो साथ भी नहीं, और हम आज़ाद भी नहीं.

हमारी शायरी पढ़ कर

हमारी शायरी पढ़ कर बस इतना सा बोले वो , कलम छीन लो इनसे .. ये लफ्ज़ दिल चीर देते है ..

मंजिल पर पहुंचकर

मंजिल पर पहुंचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों का जिक्र, अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही..

वो रोई तो जरूर

वो रोई तो जरूर होगी खाली कागज़ देखकर, ज़िन्दगी कैसी बीत रही है पूछा था उसने ख़त में..

इंतहा आज इश्क़ की

इंतहा आज इश्क़ की कर दी आपके नाम ज़िन्दगी कर दी था अँधेरा ग़रीब ख़ाने में आपने आ के रौशनी कर दी देने वाले ने उनको हुस्न दिया और अता मुझको आशिक़ी कर दी तुमने ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे बिखरा कर शाम रंगीन और भी कर दी|

पेड़ को नींद नहीं आती

पेड़ को नींद नहीं आती… जब तक आख़री चिड़िया घर नहीं आती…

खुदगर्ज़ बना देती है

खुदगर्ज़ बना देती है तलब की शिद्दत भी,, प्यासे को कोई दूसरा प्यासा नहीं लगता..।।

रफ्ता रफ्ता उन्हें

रफ्ता रफ्ता उन्हें भूले हैं मुद्दतों में हम.. किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिये..

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