अजीब पैमाना है

अजीब पैमाना है यहाँ शायरी की परख का….. जिसका जितना दर्द बुरा, शायरी उतनी ही अच्छी….

ख़ता ये हुई

ख़ता ये हुई,तुम्हे खुद सा समझ बैठे जबकि,तुम तो…‘तुम’ ही थे

शिकायत तुम्हे वक्त से नहीं

शिकायत तुम्हे वक्त से नहीं खुद से होगी, कि मुहब्बत सामने थी, और तुम दुनिया में उलझी रही…

हजारो अश्क मेरे

हजारो अश्क मेरे आँखो की हिरासत में थे फिर तेरी याद आई और उन्हें जमानत मिल गई|

कौन कहता है

कौन कहता है दुनिया में हमशक्ल नहीं होते देख कितना मिलता है तेरा “दिल” मेरे “दिल’ से.!

वो फूल हूँ

वो फूल हूँ जो अपने चमन में न रहा, वो लफ्ज़ हूँ जो शेरों सुख़न में न रहा, कल पलकों पे बिठाया, नज़र से गिराया आज, जैसे वो नोट हूँ जो चलन में न रहा।

तकदीर ने यह कहकर

तकदीर ने यह कहकर बङी तसल्ली दी है मुझे कि.. वो लोग तेरे काबिल ही नहीं थे, जिन्हें मैंने दूर किया है..

लिखा जो ख़त

लिखा जो ख़त हमने वफ़ा के पत्ते पर, डाकिया भी मर गया शहर ढूंढते ढूंढते..

जिन्दगी ने दिया सब

जिन्दगी ने दिया सब कुछ पर वफा ना दी जख्म दिये सब ने पर किसी ने दवा ना दी हमने तो सब को अपना माना पर किसी ने हमे अपनो में जगह ना दी |

आज तेरी याद

आज तेरी याद हम सीने से लगा कर रोये .. तन्हाई मैं तुझे हम पास बुला कर रोये कई बार पुकारा इस दिल मैं तुम्हें और हर बार तुम्हें ना पाकर हम रोये|

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