कभी पलकों पे

कभी पलकों पे आंसू हैं, कभी लब पर शिकायत है.. मगर ऐ जिंदगी फिर भी, मुझे तुझसे मुहब्बत है..

जनाजा देखकर मेरा

जनाजा देखकर मेरा वो बेवफा बोल पड़ी, वही मरा है ना जो मुझ पर मरता था..

कभी तुमने हँसाया है

कभी तुमने हँसाया है कभी तुमने रुलाया है, मग़र हर बार तुमने ही मुझे दिल से लगाया है। नहीं कोई ग़िला तुमसे नहीं कोई शिक़ायत है, तुम्हीं ने रातभर जगके मुझे सुख से सुलाया है।।

ऐ काश ज़िन्दगी भी

ऐ काश ज़िन्दगी भी किसी अदालत सी होती,,, सज़ा-ऐ-मौत तो देती पर आख़िरी ख्वाइश पूछकर…

बताओ तो कैसे निकलता है

बताओ तो कैसे निकलता है जनाज़ा उनका,,, वो लोग जो अन्दर से मर जाते है…

मैं अगर नशे में

मैं अगर नशे में लिखने लगूं, खुदा कसम होश आ जाये तुम्हे…

आज उसने अपने हाथ से

आज उसने अपने हाथ से पिलायी है यारो,,, लगता है आज नशा भी नशे मे है…

ये सुनकर मेरी

ये सुनकर मेरी नींदें उड़ गयी,,, कोई मेरा भी सपना देखता है…

इस तरह सुलगती तमन्नाओं को

इस तरह सुलगती तमन्नाओं को बुझाया मैं ने, करके रोशन यार की महफ़िल अपना घर जलाया मैंने…

आँखों से पिघल कर

आँखों से पिघल कर गिरने लगी हैं तमाम ख़्वाहिशें कोई समंदर से जाकर कह दे कि आके समेट ले इस दरिया को…!!

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