ज़रा सी फैली स्याही है

ज़रा सी फैली स्याही है,ज़रा से बिख़रे हम भी हैं, काग़ज़ पर थोड़े लफ़्ज़ भी है छुपे हुए कुछ ग़म भी हैं…

जब कभी भी

जब कभी भी ख़वाब में सहरा नज़र आया मुझे। तिश्नगी का इक नया चेहरा नज़र आया मुझे।।

ग़लत-फ़हमियों में

ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी कभी वो न समझे कभी हम न समझे…

पा सकेंगे न उम्र भर

पा सकेंगे न उम्र भर जिसको जुस्तुजू आज भी उसी की है।

अक्सर ज़माना छोङ देता है

मुसीबत में तो साथ अक्सर ज़माना छोङ देता है, जो अपना है वो पहले आना जाना छोङ देता है। हमारी दास्ताने जिन्दगी इक बार जो सुन ले, तो फिर वो जिन्दगी भर मुस्कराना छोङ देता है।

दुनिया से तनहा लड़ोगे….

दुनिया से तनहा लड़ोगे…. बच्चों सी बाते करते हो…..

मोहब्बतों का ज़िक्र

मोहब्बतों का ज़िक्र करते हैं कमजर्फ़ ही अक्सर, जिनकी इबादतें हैं वो ख़ामोश रहा करते हैं…

तेरी हसरतें भी

तेरी हसरतें भी आ बसीं आखिर, मेरी ख्वाहिशों की यतीम कहानी में |

सामने होते हुए भी

सामने होते हुए भी तुझसे दूर रहना.. बेबसी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी…

एक पुरानी तस्वीर

एक पुरानी तस्वीर जिसमे तुमने बिंदी लगाई है…. मै अक्सर उसे रात में चाँद समझ के देख लेता हूँ…

Exit mobile version