सारा दिन गुजर जाता है खुद को समेटने में, फिर रातको उसकी यादों की हवा चलती हैऔर हम फिर बिखर जाते है…
Category: शर्म शायरी
नहीं मुमकिन छिपा पाना
नहीं मुमकिन छिपा पाना खुदी को आईने में कभी आँखें, कभी साँसें, हकीकत बोलती हैं…….
मेरा यही अंदाज
मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है………..की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है….
zindagii tanha hojati hai
Suraj dhalte hii ye zindagii tanha hojati hai, Ye dil hii nhi, ye tanhaii bhi tanha hojati hai!!
लत लग गयी है
लत लग गयी है मुझें तो, अब तुम्हारे साथ की.. पर गुनहगार किसको कहूँ, खुद को या तेरी अदाओं को।….
बड़े शोख से
जमाना तो बड़े शोख से सुन रहा था हमी सो गए दास्ता कहेते कहेते
चाँद का अंदाज़
कितनी मुश्किलों से…..फलक पर नजर आता है. ईद के चाँद का अंदाज़…..बिलकुल तुम्हारे जैसा है….
वो खुद ही ना
वो खुद ही ना छुपा शके अपने चेहरे को नकाब मेँ….., बेवजह हमारी आँखो पे इल्जाम लगा दिया….!!!
Kitni muskilon se
Kitni muskilon se….. Falak par nazar aata hai… Eid ke chaand ka andaaz…… Bilkul tumhare jaisa hai…..
यहीं उतार चले…
ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार का है यहीं संभाल कर पहना यहीं उतार चले…