एक जुल्म ही तो है इंसानों पर, जिसे लोग मोहब्बत कहते है !!
Category: व्यंग्य शायरी
माना उन तक पहुंचती
माना उन तक पहुंचती नहीं तपिश हमारी, मतलब ये तो नहीं कि, सुलगते नहीं हैं हम….!!!
हर शख्स की
हर शख्स की अपनी कुछ मजबूरियाँ हैं, कुछ समझ पाते हैं और कुछ रूठ जाते हैं।
पगली मुझे कहनी है
पगली मुझे कहनी है तुमसे बस एक बात, दास्तान लबों से सुनोगी या निगाहों से !!
उसे भी सरबुलंदी पर
उसे भी सरबुलंदी पर हमेशा नाज़ रहता है, हमें भी आसमानों को ज़मीं करने की आदत है !
मुझसे मिलने को
मुझसे मिलने को आप आये हैं ? बैठिये, मैं बुला के लाता हूँ |
सहम उठते हैं
सहम उठते हैं कच्चे मकान, पानी के खौफ़ से, उधर महलों की आरज़ू ये है कि, बरसात और तेज हो!!
मैं अपनी ताकते
मैं अपनी ताकते इन्साफ खो चुका वर्ना तुम्हारे हाथ मै मेरा फैसला नही होता..
बहुत शौक है
बहुत शौक है न तुझे ‘बहस’ का आ बैठ… ‘बता मुहब्बत क्या है’..!!
मैंने कब कहा
मैंने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी.. हमें बिकना ही होता तो यूँ तन्हा ना होते !!