कुछ लोग आए थे मेरा दुख बाँटने मैं जब खुश हुआ तो खफा होकर चल दिये
Category: व्यंग्य शायरी
छोड दी हमने
छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी आरजू करना… जिसे मोहब्बत की कद्र ना हो उसे दुआओ मे क्या मांगना….
ना लफ़्ज़ों का
ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं, मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले…
ये दुनियावाले भी
ये दुनियावाले भी अजीब होते है दर्द आँखो से निकले तो कायर कहते है और बातों से निकले तो शायर कहते है
जरूरत और चाहत में
जरूरत और चाहत में बहुत फ़र्क है… कमबख्त़…. इसमे तालमेल बिठाते बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है !!
बुलंदी तक पहुंचना
बुलंदी तक पहुंचना चाहता हूँ मै भी… पर गलत राहो से होकर जाऊ.. इतनी जल्दी भी नही..!!
अब ये न पूछना की . .
अब ये न पूछना की . . ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के, कुछ अपना हाल सुनाता हूँ
खुद को कुछ इस तरह
खुद को कुछ इस तरह तबाह किया, इश्क़ किया क्या ख़ूबसूरत गुनाह किया, जब मुहब्बत में न थे तब खुश थे हम, दिल का सौदा किया बेवजह किया|
आशिक था एक मेरे अंदर
आशिक था एक मेरे अंदर, कुछ साल पहले गुज़र गया..!! अब कोई शायर सा है, अजीब अजीब सी बातें करता है
उदास कर देती है
उदास कर देती है, हर रोज ये शाम मुझे .. यूँ लगता है, जैसे कोई भूल रहा हो, मुझे आहिस्ता आहिस्ता..!!