माँ-बाप घर पर है

वो अनजान चला है जन्नत को पाने की खातिर बेख़बर को इत्तला कर दो की माँ-बाप घर पर है|

जिन्दगी की जेब

बार बार रफू करता रहता हूँ जिन्दगी की जेब… कम्बखत फिर भी निकल जाते हैं खुशियों के कुछ लम्हें… ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है….. ना तो किसी को गम चाहिए और, ना ही किसी को कम चाहिए….!!!

इतना तो किसी

इतना तो किसी ने चाहा भी न होगा, जितना मैने सिर्फ सोचा है……

सज़ा-ए-मौत

कुछ लोग सिखाते है मुझे प्यार के क़ायदे कानून, नही जानते वो इस गुनाह में हम सज़ा-ए-मौत के मुज़रिम हैं…….

अदा-ए-हुस्न

अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे.. गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!

अदा-ए-हुस्न

अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे.. गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!”

Exit mobile version