इतना भी प्यार किस काम का..भूलना भी चाहो तो नफरत की हद तक जाना पढ़े..!!
Category: व्यंग्य शायरी
अपना कहने वाले
“जलने वालों” की दुआ से ही सारी बरकत है., वरना., अपना कहने वाले लोग तो याद भी नही करते..!!
जाने कभी गुलाब
जाने कभी गुलाब लगती हे जाने कभी शबाब लगती हे तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती हे में पिए रहु या न पिए रहु, लड़खड़ाकर ही चलता हु क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती हे
जिँदगी नहीं लिखी
कमी तेरे नसीबों में रही होगी, कि जिँदगी नहीं लिखी तेरे संग बिताने को.. . . . मैने तो हर संभव कोशिश की, तुझे अपना बनाने को..!!
एक रोज इश्क़ हुआ..
नजर, नमाज, नजरिया.. सब कुछ बदल गया… एक रोज इश्क़ हुआ… और मेरा खुदा बदल गया..!!
अजीब कहानी है
अजीब कहानी है इश्क और मोहब्बत की, कि उसे पाया ही नहीं फिर भी खोने से डरता हूँ.
सोचा ना था
सोचा ना था ज़िंदगी ऐसे फिर से मिलेगी जीने के लिये, आँख को प्यास लगेगी अपने ही आँसू पीने के लिये…!!!
तुम ये ग़लत
तुम ये ग़लत कहते हो कि मेरा कुछ पता नहीं है तुमने ढूँढा ही नहीं मुझे ढूँढ ने की हद तक
यही बस सोचकर
यही बस सोचकर के हम सफाई दे नहीं पाए…. भले इल्जाम झूठा है, मगर तुमने लगाया है
करवटें बदलता रहा
करवटें बदलता रहा बिस्तर में यू ही रात भर, पलकों से लिखता रहा तेरा नाम चाँद पर ॥