वो भी आधी रात

वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी …… फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं लोग …. ?

अधूरी न लिखा कर

ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है तो मेरा लहू लेले, यू कहानिया अधूरी न लिखा कर

तुझे भी इजाजत है

सब छोड़े जा रहे है आजकल हमें,,,,, ” ऐ जिन्दगी ” तुझे भी इजाजत है,,,, जा ऐश कर…ll

मुमकिन नहीं की

कोई तो लिखता होगा इन कागजों और पत्थरों का भी नसीब । वरना मुमकिन नहीं की कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाए । और कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता और कुरान बन जाए ।।

बुलंदी देर तक

बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।

आज कल हर इंसान

“समझदार” एक मै हूँ बाकि सब “नादान”.. बस इसी भ्रम मे घूम रहा आज कल हर “इंसान”.!!

तरीके बदल जाते है

नसीहतें और दुआए बदलती नहीं है.. देने वाले लोग और तरीके बदल जाते है..

ज्यादा मुश्किल है

ज़ुबान की हिफाज़त….. दौलत से ज्यादा मुश्किल है…

बस इतना कहूगाँ

जो बुरे वक्त मेँ मेरे साथ था उनके लिए मैँ बस इतना कहूगाँ….. मेरा अच्छा वक्त सिर्फ तुम्हारे लिए होगा…..!!

अधूरी होती है

सबकी अपनी अपनी कहानी होती है, किसी की पूरी तो किसी की अधूरी होती है । … … मेरी अधूरी है ।

Exit mobile version