मोहब्बत अब समझदार हो गयी है, हैसियत देख कर आगे बढ़ती है….
Category: शर्म शायरी
सोचता हूँ गिरा दूँ
सोचता हूँ गिरा दूँ सभी रिश्तों के खंडहर , इन मकानो से किराया भी नहीं आता है ….!!
उसकी हर एक शिकायत
उसकी हर एक शिकायत देती है मुहब्बत की गवाही, . अजनबी से वर्ना कौन हर बात पर तकरार करता है!
जब उस की ज़ुल्फ़ में
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया तब उस को पहली मुलाक़ात का ख़याल आया…
नया कुछ भी नहीं
नया कुछ भी नहीं हमदम, वही आलम पुराना है; तुम्हीं को भुलाने की कोशिशें, तुम्हीं को याद आना है…
इतनी तो तेरी सूरत भी
इतनी तो तेरी सूरत भी नहीं देखी मैने, जितना तेरे इंतज़ार में घड़ी देखी है !!
एक तो उसकी पाजेब
एक तो उसकी पाजेब भी जानलेवा थी ऊपर से ज़ालिम ने पैरों में मेहन्दी रचाई है
दर्द की भी अपनी ही
दर्द की भी अपनी ही एक अदा है..वो भी सिर्फ सहने वालों पर ही फिदा है..
लहजा शिकायत का
लहजा शिकायत का था मगर…. सारी महफिल समझ गई “मामला मोहब्बत का है”
आज वो मशहूर हुए
आज वो मशहूर हुए, जो कभी काबिल ना थे.. मंज़िलें उनको मिली, जो दौड़ में शामिल ना थे.!!