तेरे हर ग़म को

तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ; ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ; मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी; सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ।

मत दिखाओ हमें

मत दिखाओ हमें, तुम ये मुहब्बत का बहीखाता , हिसाब-ए-इश्क़ रखना, हम दीवानों को नहीं आता …

कितनी है कातिल ज़िंदगी

कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू, मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।

अक्ल बारीक हुई

अक्ल बारीक हुई जाती है, रूह तारीक हुई जाती है।

हमारे बिन अधूरे तुम

हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे, कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे..

सियाही फैल गयी

सियाही फैल गयी पहले, फिर लफ्ज़ गले, और एक एक कर के डूब गए..

आँखों की दहलीज़ पे

आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से… घर तो आखिर घर होता है… तुम रह लो या मैं रह लूँ….

जो कभी किया ना

जो कभी किया ना असर शराब ने, वो तेरी आँखों वे कर दिया, सजा़ देना तो मेरी मुठ्ठी मे थी, मुझे हि कैद तेरी सलाखों ने कर दिया ..

कीसीने युं ही

कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है? हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।

अगर मालूम होता

अगर मालूम होता की इतना तडपता है इश्क, तो दिल जोड़ने से पहले हाथ जोड़ लेते..

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