गुज़रे इश्क़ की गलियों से और समझदार हो गए, कुछ ग़ालिब बने यहाँ कुछ गुलज़ार हो गए।
Category: वक्त-शायरी
अपनी मौजूदगी का
अपनी मौजूदगी का एहसास दिला दिया कर, थक गया हूँ शायरियां करते-करते।
क्या इल्जा़म लगाओगे
क्या इल्जा़म लगाओगे मेरी आशिकी पर, हम तो सांस भी तुम्हारी यादों से पूछ कर लेते है..
कब गुरुर बढ जाए ..
आईने का जाने कब गुरुर बढ जाए … पत्थरों से भी दोस्ती निभाना जरुरी है..
उम्र का बढ़ना
उम्र का बढ़ना तो दस्तूर- ए जहाँ है मगर महसूस ना करो तो उम्र बढ़ती कहाँ है ?
मेरे खेत की मिट्टी
मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट मेरा नादान गाँव अब भी उलझा है कर्ज की किश्तों में..
दर्द आसानी से
दर्द आसानी से कब ‘पहलू’ बदल के निकला आँख का तिनका बहुत आँख ‘मसल’ के निकला..
मुकम्मल हो ही नहीं
मुकम्मल हो ही नहीं पाती कभी तालीमे मोहब्बत… यहाँ उस्ताद भी ताउम्र एक शागिर्द रहता है…!!
बटुए को कहाँ मालूम
बटुए को कहाँ मालूम पैसे उधार के हैं… वो तो बस फूला ही रहता है अपने गुमान में।।
ऐसा तो कभी हुआ नहीं
ऐसा तो कभी हुआ नहीं, गले भी मिले, और छुआ नहीं!