ज़रा ज़िद्दी हूँ

ज़रा ज़िद्दी हूँ ख़्वाब देखने से बाज़ नहीं आता, इतनी सी बात पर हकीक़तें रूठ जाती है मुझसे…

एक लम्हा भी

एक लम्हा भी मसर्रत का बहुत होता है, लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।

बेशुमार दिल मिलते हैं

एक बाज़ार है ये दुनिया… सौदा संभाल के कीजिए… मतलब के लिफ़ाफ़े में… बेशुमार दिल मिलते हैं…

अंजाम का खयाल

आने लगा हयात को अंजाम का खयाल, जब आरजूएं फैलकर इक दाम बन गईं।

अगर कांटा निकल जायें

अगर कांटा निकल जायें चमन से, तो फूलों का निगहबां कौन होगा।

आँखों में छुपाए

आँखों में छुपाए फिर रहा हूँ, यादों के बुझे हुए सबेरे।

एहसान चढा हुआ है

कैसे चुकाऊं किश्तें ख्वाहिशों की .. मुझ पर तो ज़रुरतों का भी एहसान चढा हुआ है ..!!

ढूँढ़ा है अगर

ढूँढ़ा है अगर जख्मे-तमन्ना ने मुदावा, इक नर्गिसे-बीमार की याद आ ही गई है।

तू मांग तो सही

तू मांग तो सही अपनी दुआओं में बददुआ मेरे लिए, देखना मैं हंसकर खुदा से आमीन कह दूंगा..!!

ख़ामोशी में ढुँढ जिक्र अपना

लफ्ज़ तो सारे सुने सुनाये है, अब तु मेरी ख़ामोशी में ढुँढ जिक्र अपना..

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