तुम लिखते रहे मेरे आसुओ से गजल

तुम लिखते रहे मेरे आसुओ से गजल… अफसोस… तुम ने इतना भी ना पुछा की रोते क्यु हो..

कहीं तो वो लिखती होगी

कहीं तो वो लिखती होगी अपनी दिल की छुपी हुई बातें, कहीं तो बे- शुमार लफ्जों मे मेरा नाम भी होगा……

यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी

यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी की इन्तहां.! कि तेरे ही क़रीब से गुज़र गए तेरे ही ख़्याल में.

बड़ा फर्क है तेरी और मेरी मोहब्बत में

“बड़ा फर्क है तेरी और मेरी मोहब्बत में…… तू परखता रहा…… और हमने ज़िंदगी यकीन में गुजार दी…!”

ये झूठ है…

ये झूठ है… के मुहब्बत किसी का दिल तोड़ती है , लोग खुद ही टुट जाते है,,, मुहब्बत करते-करते…..

शराफत के किस्से

अब छोड़ो ये शराफत के किस्से, दुनिया के दस्तुर और दिलों के हिस्से, सब मुकद्दर के हाथों की कठपुतलियां हैं, कभी तुम अच्छे कभी हम अच्छे!!!!

मासूमियत

मासूमियत का इससे पवित्र प्रमाण कहीं देखा है ???? एक बच्चे को उसकी माँ मार रही थी और बचाने के लिये बच्चा माँ को ही पुकार रहा था…

जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया,

जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया, हम सिख न पाये ‘फरेब’ और दिल बच्चा ही रह गया !

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