बेरूख़ी न दिखाओ के रात जाती है
नक़ाब रुख़ से उठाओ के रात जाती है
वो एक शब के लिए मेरे घर में आए हैं
सितारे तोड़ के लाओ के रात जाती है
तुम आये हो मैं ये कहता हूँ तुम नहीं आये
मुझे यकीन दिलाओ के रात जाती है
चराग-ए-दिल के उजाले को तुम सहर न कहो
बहाने यूँ न बनाओ के रात जाती है
तमाम उम्र पड़ी है शिकायतों के लिए
तुम आज दिल न दुखाओ के रात जाती है