अभागे क्षणों की समीक्षा

उन अभागे क्षणों की समीक्षा न हो
आँख जब इक उदासी का घर हो गयी
चुप रहे हम सदा कुछ न बोले कभी
चुप्पियाँ फिर गुनाहों का स्वर हो गयी
न्याय का कब कोई एक आधार है
यातना हर घड़ी
याचना जन्मभर ।

देह वनवास को सौंपकर वो चला
चित्त घर की दिशा
शेष जाने किधर ।

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