अब भी अंदाज़ मेरे

मत देखो, ऐसी नज़रों से, मुझको अय! हमराज़ मेरे .
मेरा शरमाना, ज़ाहिर कर देता है सब राज़ मेरे.

कितनी बार मशक्क़त की, पर सीधी माँग नहीं निकली.
लगता है कल रूठे साजन, अब भी हैं नाराज़ मेरे.

बरसों पहले, डरते – डरते ,बोसा एक चुराया था.
आज तलक कहती हैं के ‘जानम हैं धोखेबाज़ मेरे’.

आज मेरे अंजाम पे कुछ आँखों से पानी बरसेगा,
इन आँखों ने देखे थे, कुछ जोशीले आग़ाज़ मेरे .

तख़्त ओ ताज गया ,मेरी जागीर गयी,दस्तार गयी.
शाहाना क्यों लगते हैं, उनको अब भी अंदाज़ मेरे

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