ढल गया आफ़ताब

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी
ला पिला दे शराब ऐ साक़ी
या सुराही लगा मेरे मुँह से
या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी

मैकदा छोड़ कर कहाँ जाएँ
है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी

जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी
आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version