यही देना मुनासिब है

नसीहत अब बुजुर्गों को यही देना मुनासिब है, जियादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं।

आसुंओं के धुंध

यूँ तो मेरी रगे-जाँ से भी थे नजदीकतर.. आसुंओं के धुंध में लेकिन न पहचाने गये..!

यूँ मुतमइन आये हैं

यूँ मुतमइन आये हैं खाकर जिगर पै चोट.. जैसे वहाँ गये थे इसी मुद्दआ के साथ..!

यह सब तस्लीम है

यह सब तस्लीम है मुझको मगर ऐ दावरे-मशहर.. मुहब्बत के सिवा जुर्मे-मुहब्बत की सजा क्या है..!

नाम आता है..!

यह महवीयत का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ.. जुबाँ पर बेतहाशा आप ही का नाम आता है..!

करम का जुहूर था..

मौकूफ र्म ही पै करम का जुहूर था.. बन्दा अगर कुसूर न करता, गुनाह था..!

इश्क पे जोर नहीं

मौत की राह न देखूं कि बिन आये न रहे, तुमको चाहूं न आओ तो बुलाये न बने। इश्क पे जोर नहीं, है ये वो आतिश ‘गालिब’, कि लगाये न लगे और बुझाये न बने..!

कैसे पूछूं तकदीर से

हर बार मिली है मुझे अनजानी सी सज़ा मैं कैसे पूछूं तकदीर से मेरा कसूर क्या है

अकेलेपन ने बिगाड़ी है

अकेलेपन ने बिगाड़ी है आदतें मेरी,,, तुम लौट आऔ तो मुमकिन है सुधर जाऊँ मैं…

कुछ पल यूं

कुछ पल यूं ही बीत गये तसव्वुर में तेरे, कब हसीनाएं अंकल कहने लगी पता ना चला

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