पूछ रहे हैं वो मेरा हाल, जी भर रुलाने के बाद! के बहारें आयीं भी तो कब? दरख़्त जल जाने के बाद!
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इतेफाक देखिये शायर ने
इतेफाक देखिये शायर ने शायर के नज्म को देखा इतमिनान से हैं वो जिसे शायर ने अपनी नज़्म में देखा|
हमने जाना के सोच समझ कर
हमने जाना के सोच समझ कर किसी को हाल ए दील बताना…… और ये भी जाना के क्या होता है आखो का समन्दर हो जाना….
आ कहीं मिलते हे
आ कहीं मिलते हे हम ताकि बहारें आ ज़ाए, इससे पहले कि ताल्लुक़ में दरारें आ जाए…
परिंदे बे-ख़बर थे
परिंदे बे-ख़बर थे सब पनाहें कट चुकी हैं, सफ़र से लौट कर देखा कि शाख़ें कट चुकी हैं…
एक ही ख्वाब ने
एक ही ख्वाब ने, सारी रात जगाया है, मै ने हर करवट सोने की कोशिश की..
घेर लेती है
घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदन जान कर कोई गिरफ़्तार नहीं होता यार|
कहाँ तो तय था
कहाँ तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए |
बैठे थे अपनी मस्ती में
बैठे थे अपनी मस्ती में की अचानक तड़प उठे, आ कर तुम्हारी याद ने अच्छा नहीं किया !!
सिखा दिया हैं
सिखा दिया हैं जहाँ ने, हर जख्म पे हसना….!! ले देख जिन्दगी, अब मै तुझ से नही डरता….!!