यूँ मेरे ख़त का

यूँ मेरे ख़त का जबाब आया.. ..लिफाफे में एक गुलाब आया ।

ख़ामोशी से भी

ख़ामोशी से भी नेक काम होते हैं, मैंने देखा है पेड़ों को छाँव देते हुए..

कुछ तो संभाल के

कुछ तो संभाल के रखती , देखो मुझे भी खो दिया तुमने….

दिल किसी से

दिल किसी से तब ही लगाना जब दिलों को पढ़ना सीख लो, हर एक चेहरे की फितरत मैं वफादारी नहीं होती.

कैसा है ये इश्क

कैसा है ये इश्क और कैसा हैं ये प्यार ,जीते-जी जो मुझ से , तुम दूर जा रहे हो..

जिसे मौका नही मिला

कौन है इस जहान मे जिसे धोखा नही मिला, शायद वही है ईमानदार जिसे मौका नही मिला…

तुम से बेहतर

तुम से बेहतर तो तुम्हारी निगाहें थीं, कम से कम बातें तो किया करतीं थीं…

कहाँ खर्च करूँ

कहाँ खर्च करूँ , अपने दिल की दौलत… सब यहाँ भरी जेबों को सलाम करते हैं…

कोई पुरानी तमन्ना

आँखों से पानी गिरता है , तो गिरने दीजिये… कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी…

कम बिकता हूं

छोटे शहर के अखबार जैसा हूं मैं,, दिल से लिखता हूं, शायद इसलिए कम बिकता हूं..!

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