खत क्या लिखा….

खत क्या लिखा….. मानवता के पते पर डाकिया ही गुजर गया पता ढूढते ढूढते…..

करीब ना होते हुए भी

करीब ना होते हुए भी करीब पाओगे हमें क्योंकि… एहसास बन के दिल में उतरना आदत है मेरी….

कुछ तो सोचा होगा

कुछ तो सोचा होगा कायनात ने तेरे-मेरे रिश्ते पर… वरना इतनी बड़ी दुनिया में तुझसे ही बात क्यों होती….

मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है

मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है।

मैं ख्वाहिश बन जाऊँ

मैं ख्वाहिश बन जाऊँ और तू रूह की तलब बस यूँ ही जी लेंगे दोनों मोहब्बत बनकर.

कल फिर जो तुमको

कल फिर जो तुमको देखा दीवार की ओंट से ज़िन्दगी फिर मुस्कुरा उठी नजरों की चोट से

रंग उन अनकही बातो का

रंग उन अनकही बातो का आज भी हरा है जाने कितने पतझड बीत गये….

कहानी ख़त्म हुई

कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई…कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए..

उम्मीदों के ताले पड़े

उम्मीदों के ताले पड़े के पड़े रह गए,तिज़ोरी उम्र की, ना जाने कब ख़ाली हो गई !!

ज़िन्दगी में है

ज़िन्दगी में है थोड़ी उंच नीच मगर, एक मौत है जो यहाँ सबको बराबर बंटी है।

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