मुहब्बतों के दिनों की

मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है , यह रूठ जायें तो फिर लौटकर नहीं आते|

ज़मीं पर आओ

ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है बुलंदी से कभी ज़र्रों का अंदाज़ा नहीं होता|

अब ना कोई शिकवा

अब ना कोई शिकवा,ना गिला,ना कोई मलाल रहा.सितम तेरे भी बेहिसाब रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा!!

याद आने की वज़ह

याद आने की वज़ह बहुत अज़ीब है तुम्हारी …. तुम वो गैर थे जिसे मेने एक पल में अपना माना !!

मुझे अपने लफ़्जो से

मुझे अपने लफ़्जो से आज भी शिकायत है, ये उस वक़त चुप हो गये जब इन्हें बोलना था…

उसने मुझे एक बार

उसने मुझे एक बार क्या देखा ।। हमने सौ बार आऐना देखा।।

मैं कर तो लूँ

मैं कर तो लूँ मुहब्बत फिर से मगर याद है दिल लगाने का अंजाम अबतक|

इतना कमाओ की..

जिंदगी मे बस इतना कमाओ की.. जम़ीन पर बैठो तो.. लोग उसे आपका बडप्पन कहें.. औकात नहीं…..

वो बर्फ़ का

वो बर्फ़ का शरीफ टुकड़ा जाम में क्या गिरा.. धीरे धीरे, खुद-ब-खुद शराब हो गया….

हम आईना हैं

हम आईना हैं, ……. आईना ही रहेंगे,….. फ़िक्र वो करें, ……. जिनकी शक्ल में कुछ …… और दिल में कुछ और है…

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