वो शक्स रोज

वो शक्स रोज देखता है डूबते हुये सूरज को काश हम भी किसी शाम का मंजर होते

मासूमियत का कुछ

मासूमियत का कुछ ऐसा अंदाज़ था मेरे सनम का, उसे तस्वीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेती थी….

बड़ी बेवफ़ा हो जाती

बड़ी बेवफ़ा हो जाती है ग़ालिब ये घड़ी भी सर्दियों में। पाँच मिनट और सोने की सोचो तो तीस मिनट आगे बढ़ जाती है।।

न समझ भूल

न समझ भूल गया हूँ तुझे , तेरी खुशबू मेरे सांसो में आज भी हैं !! मजबूरियों ने निभाने न दी मोहब्बत ! सच्चाई मेरी वाफाओ में आज भी हैं !!

दिल दे देंगे

कभी उदास बेठी हो तो बताना, हम फिर से दिल दे देंगे खेलने के लिए !!

बचपन बड़ा होकर

बचपन — बड़ा होकर पायलट बनूँगा, डॉक्टर बनूँगा या इंजीनियर बनूँगा…. जवानी — “अरे भाई वो चपरासी वाला फॉर्म निकला की नही अभी तक

हवाओ जैसी

रुके तो चाँद जैसी हैँ….. चले तो हवाओ जैसी हैँ….. वो माँ ही हैँ….. जो धुप मैँ भी छाँव जैसी हैँ….

तेरा ऐ दिल

माफी चाहता हूँ गुनेहगार हूँ तेरा ऐ दिल, तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं

ढूंढ रहे हो

कमियां तो पहले भी थीं मुझमें.. अब जो बहाना ढूंढ रहे हो तो वो अलग बात है.. !!

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