ज़िंदगी अब नही

ज़िंदगी अब नही सवरेगी शायद, . बड़ा तजुर्बेकार था उजाड़ने वाला..!!

बदलने को हम भी

बदलने को हम भी बदल जाते… फिर अपने आप को क्या मुंह दिखाते |

अनजाने शहर में

अनजाने शहर में अपने मिलते है कहाँ डाली से गिरकर फूल फिर खिलते है कहाँ . . . आसमान को छूने को रोज जो निकला करे पिँजरे में कैद पंछी फिर उड़ते है कहाँ . . . दर्द मिलता है अक्सर अपनो से बिछड़कर टूट कर आईने भला फिर जुड़ते है कहाँ . . .… Continue reading अनजाने शहर में

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