बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में, इस ख़बर पर हम ने भी, गुल-दान ख़ाली कर दिया
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थे तो बहुत मेरे भी
थे तो बहुत मेरे भी इस दुनियां में कहने को अपने, पर जब से हुआ है इश्क हम लावारिस हो गए !!
जा रही हूँ
जा रही हूँ मैं तेरी जिन्दगी से कभी ना फिर लौट के आने को , रोक लो अपने एहसासों को जो लिपट रहे मेरे कदमों से संग आने को !
न जाने इन आंखों को
न जाने इन आंखों को किसकी जुस्तजू है सारी रात देखता रहा घर के दहलीज को !
दिल की गली से
दिल की गली से तो गुजरे न जाने शक्स कितने पर , कोई एक पल कोई दो पल कोई रुका ना उम्र भर के लिए !
तलब उठती है
तलब उठती है बार-बार तेरे दीदार की; ना जाने देखते-देखते कब तुम लत बन गये।
नजाकत तो देखिये
नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा, चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा !!
कहाँ उलझा पड़ा है
कहाँ उलझा पड़ा है तू उन छोटी छोटी बातों में चल कोई बड़ी बात से हम अब ये रिश्ता ख़त्म करते हैं|
हुस्न वाले जब
हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम.
कल रात मैंने
कल रात मैंने अपने सारे ग़म, कमरे की दीवार पर लिख डाले, बस फिर हम सोते रहे और दीवारे रोती रही.