आ रही रात की खुशबु

आ रही रात की खुशबु तुझे छूकर हवाओं से दे रहा ईश्क फिर दस्तक भोर की ईन फिजाओं से

मेरी फितरत ही

मेरी फितरत ही कुछ ऐसी है कि… दर्द सहने का लुत्फ़ उठाता हु मैं…

वो शातिर है

वो शातिर है जानता है आदमी की जरूरतें क्या क्या हैं, सफ़ेद कुर्ते की इक जेब में रोटी तो दूसरी में रम रखता है ।

उफ़ ये रोज़ रोज़

उफ़ ये रोज़ रोज़ ख़ुद से बातें बगावत की उफ़ ये रोज़ रोज़ तुझ बिन रातें आमावस की|

हर बार मैं

हर बार मैं ही गलत होता हूँ यह तेरी इक ग़लतफ़हमी है|

पा सकेंगे न उम्र भर

पा सकेंगे न उम्र भर जिस को जुस्तुजू आज भी उसी की है|

कैसे नादान है

कैसे नादान है हम लोग .. दुख आता है तो अटक जाते है । सुख आता है तो भटक जाते है ।

तमाम रात तेरे

तमाम रात तेरे मय-कदे में मय पी है, तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं…

ये सोचना ग़लत है

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं।

आज पास हूँ

आज पास हूँ तो क़दर नहीं है तुमको, यक़ीन करो टूट जाओगे तुम मेरे चले जाने से|

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