ज़रा अल्फ़ाज़ के

ज़रा अल्फ़ाज़ के नाख़ून तराशों बहुत चुभते है……. जब नाराज़गी से बातें करती हो….!!

आओ मिलकर ढूंढ ले

आओ मिलकर ढूंढ ले वजह, फिर से एक हो जाने की.. यूँ एक-दूसरे से बिछड़कर, ना तुम अच्छे लगते हो और ना हम..

नींदें छीन रखी है

नींदें छीन रखी है तेरी यादों ने . गिला तेरी दुरी से करें या अपनी चाहत से..

तोड़ दो ना वो कसम

तोड़ दो ना वो कसम जो खाई है, कभी कभी याद कर लेने में क्या बुराई है..

दर्द से मेरा

दर्द से मेरा दामन भर दे फिर चाहे दीवाना कर दे|

अभी तो साथ चलना है

अभी तो साथ चलना है समंदरों की लहरों मॆं . . . किनारे पर ही देखेंगे… किनारा कौन करता है?

साँसों को मोहब्बत है

साँसों को मोहब्बत है धड़कन से,हम्हे ऐसी मोहब्बत है तुमसे|

खुदा की बन्दगी..

खुदा की बन्दगी.. शायद अधूरी रह गई.. तभी तेरे मेरे दरमियाँ.. ये दूरी रह गई..

होने को तो बहुत

होने को तो बहुत कुछ फिर से हो जाता है, लेकिन इश्क़ और इत्तेफ़ाक़ अक्सर नहीं हुआ करते !!

अब और ना मुझको

अब और ना मुझको तू उन पुराने किये हुए मेरे फिज़ूल से वादों का हवाला दे बंद कर बक्से में तेरी यादों को कर सकूँ काम अपने, तू बस ऐसा मज़बूत सा ताला दे|

Exit mobile version