गुज़रे इश्क़ की

गुज़रे इश्क़ की गलियों से और समझदार हो गए, कुछ ग़ालिब बने यहाँ कुछ गुलज़ार हो गए।

किसी मासूम बच्चे के

किसी मासूम बच्चे के तबस्सुम में उतर जाओ,,,, तो शायद ये समझ पाओ, की ख़ुदा एैसा भी होता है

बात मिज़ाज़ो की है

बात मिज़ाज़ो की है कि गुल कुछ नही कहते वरना कभी कांटों को मसलकर दिखलाइये..

मेरे खेत की मिट्टी

मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट मेरा नादान गाँव अब भी उलझा है कर्ज की किश्तों में..

मुकम्मल हो ही नहीं

मुकम्मल हो ही नहीं पाती कभी तालीमे मोहब्बत… यहाँ उस्ताद भी ताउम्र एक शागिर्द रहता है…!!

इतना शौक मत रखो

इतना शौक मत रखो इन इश्क की गलियों में जाने का, क़सम से रास्ता जाने का है पर आने का नहीं।

लम्हा सा बना दे

लम्हा सा बना दे मुझे.. रहूँ गुज़र के भी साथ तेरे…..!!

बस वो मुस्कुराहट

बस वो मुस्कुराहट ही कहीं खो गई है, बाकी तो मैं बहुत खुश हूँ आजकल…

दुनिया से बेखबर

दुनिया से बेखबर चल कही दूर निकल जाये

ख़ुदकुशी करने वाले

ख़ुदकुशी करने वाले को इक भरम ये है… जो भी होगा उसके बाद सब अच्छा होगा…!!

Exit mobile version