तुम क्युँ मरते हो

तुम क्युँ मरते हो मुझ पे, मैँ तो जिन्दा ही तुम से हुँ….!!

वो दिल ही क्या

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे |

कितना अच्छा लगता है

कितना अच्छा लगता है ना जब मोहब्बत में कोई कहे…. क्यूँ करते हो किसी और से बात मैं काफी नहीं आपके लिए…?

मेरे इस दिल को

मेरे इस दिल को तुम ही रख लो,बड़ी फ़िक्र रहती है इसे तुम्हारी..!

ये वादा है

ये वादा है तुमसे वो दिन भी मैं लाऊंगा जब तुम खुद कहोगी..! मुझे दुनिया की परवाह नहीं मैं बस तुम्हारी होना चाहती हूं..!!

मुझसे ज्यादा खुशनसीब

मुझसे ज्यादा खुशनसीब तो मेरे लिखे लफ्ज हैं.. जिन्हें कुछ देर तक तो पढ़ेंगी निगाहें तेरी

तुम्हारे दिल में शायद

तुम्हारे दिल में शायद डूब चूका हु मैं, इस दिसंबर की अंतिम शाम की तरह..!!

खामोशी की भाषा

खामोशी की भाषा चुप्पियाँ जानती हैं,,, स्पर्श की कविता उँगलियाँ जानती है…

किसी सहरा में

किसी सहरा में महकता गुलिस्ताँ न हो जाऊँ, हर ऐब सुधार लूँ तो फ़रिश्ता न हो जाऊँ..

मुसाफ़िर हो तो

मुसाफ़िर हो तो सुन लो राह में सहरा भी आता है निकल आए हो घर से क्या तुम्हें चलना भी आता है

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