पहचान की नुमाईश

पहचान की नुमाईश जरा कम करो यारों … जहाँ भी “मैं” लिखा है उसे “हम” करो यारों

तुम आते थे

तुम आते थे बहार आती थी एक एक लम्हा महका जाती थी अब तुम जो नही हो तुम्हारी यादें आती हैं दिल के ज़ख़्मों को कुरेद जाती हैं

उनके ही नसीब में

ठंडी रोटी अक्सर उनके ही नसीब में होती है जो अपनों के लिए कमाई करके देर से घर लौटते हैं..

मुझ से पत्थर

मुझ से पत्थर ये कह कह के बचने लगे.. तुम ना संभलोगे ठोकरें खा कर ..

वहाँ तूफान भी

वहाँ तूफान भी हार जाते है… जहाँ कश्तियाँ ज़िद पे होती है |

तू जाहिर है

तू जाहिर है……लफ्जो में मेरे मैं गुमनाम हूँ….खामोशियों में तेरी..!!!

कही होकर भी

कही होकर भी नहीं हूँ, कहीं न होकर भी हूँ। बड़ी कशमकश में हूँ कि कहाँ हूँ और कहाँ नहीं हूँ।

सारा लहू बदन का

सारा लहू बदन का, जमी पर गिरा दिया…! हम पर कर्ज था वतन का हमने चुका दिया भारत माता की जय

माफ हो गुस्ताखी

गुस्ताखी माफ हो गुस्ताखी , क्योंकि हम तुम्हे जिन्दगी कह नही पाते , हाँ मगर तुम वो अहसास हो आते , जैसे जिन्दगी तुम्हारे साथ साथ ही हो , या जिन्दगी का तुम ही आभास हो !

ये उड़ती ज़ुल्फें

ये उड़ती ज़ुल्फें,ये बिखरी मुस्कान, एक अदा से संभलूँ,तो दूसरी होश उड़ा देती है..!!

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