कभी तू नाराज़​

कभी तू नाराज़​ ​कभी मैं नाराज़,​ उफ़ ये मोहब्बत. उफ़ ये अंदाज़|

कतरा कतरा मेरे

कतरा कतरा मेरे हलक को तर करती है… मेरी रग रग में तेरी मुहब्बत सफर करती है…

न जाने किस हुनर को

न जाने किस हुनर को शायरी कहते होगेँ लोग…! हम तो वो लिख़ रहे हैँ, जो किसी से कह नहीं पाते…

दर्द है दिल में

दर्द है दिल में पर इस का एहसास नही होता,रोता है दिल जब वो पास नहीं होते,बर्बाद हो गए हम उन के प्यार में, और वो कहते है इस तरह प्यार नही होता।

मेरी गली से गुजरा

मेरी गली से गुजरा, घर तक नहीं आया, अच्छा वक्त भी करीबी रिश्तेदार निकला..!!

जैसे कोई तितली

जैसे कोई तितली हो मकड़ी के जाले में, कुछ ऐसे ही ज़िन्दगी फड़ फड़ा रही है मुझ में….!!

तरस जाओगे दीदार को

तरस जाओगे दीदार को भी जब लौट कर हम नही आए |

कभी मिल सको

कभी मिल सको तो इन पंछियो की तरह बेवजह मिलना, वजह से मिलने वाले तो न जाने हर रोज़ कितने मिलते है !!

कुछ इस तरह

कुछ इस तरह सिमटा है तू मुझमे , बिखरी हुई छाँव में धुप के टुकड़े जैसे …

मुद्दत हो गयी

मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले…!!! बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले…

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