कूछ रिश्तों के

आज कि बात कूछ रिश्तों के नाम नही होते. कूछ रिश्ते नाम के होते है.

पहले भी तुम

छोटी सी लिस्ट है मेरी “ख़्वाहिशों” की पहले भी तुम और आख़िरी भी तुम

मेरे पत्थर के

हाथ मेरे पत्थर के, पत्थर की हैं मेरी उंगलियां, दरवाज़ा तेरा काँच का, मुझसे खटखटाया न गया…

तू जिंदगी में आई

दोनों ही बातों से तेरी एतराज है मुझको.. क्यों तू जिंदगी में आई और क्यों चली गई..

अपने बारे में

खुद अपने वजूद का ख्याल खो बैठोगें, अपने बारे में जीयादा ना सोचना दोस्तों……..!

मौसम फिर से

आज ये मौसम फिर से करवा रहा है मुझसे शायरी…..!! वरना इस दिल के जज़्बातों को दबे तो ज़माना हो गया…..!!

मोल नहीं लेता..

आज़ादी एक ख़तरा हैं, हर कोई मोल नहीं लेता..

जरूरत होती है तब

“मैं” पसन्द तो बहुत हूँ सबको, पर. जब उनको मेरी जरूरत होती है तब…

जितना दम है

कलम में जितना दम है जुदाई की बदौलत है ! वरना लोग मिलने के बाद लिखना छोड़ देते है ..!?

जिनकी बातों में

अपनापन छलके जिनकी बातों में, सिर्फ कुछ ही बंदे ऐसे होते हैं लाखों में!

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