नाम आता है..!

यह महवीयत का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ.. जुबाँ पर बेतहाशा आप ही का नाम आता है..!

करम का जुहूर था..

मौकूफ र्म ही पै करम का जुहूर था.. बन्दा अगर कुसूर न करता, गुनाह था..!

इश्क पे जोर नहीं

मौत की राह न देखूं कि बिन आये न रहे, तुमको चाहूं न आओ तो बुलाये न बने। इश्क पे जोर नहीं, है ये वो आतिश ‘गालिब’, कि लगाये न लगे और बुझाये न बने..!

कैसे पूछूं तकदीर से

हर बार मिली है मुझे अनजानी सी सज़ा मैं कैसे पूछूं तकदीर से मेरा कसूर क्या है

अकेलेपन ने बिगाड़ी है

अकेलेपन ने बिगाड़ी है आदतें मेरी,,, तुम लौट आऔ तो मुमकिन है सुधर जाऊँ मैं…

कुछ पल यूं

कुछ पल यूं ही बीत गये तसव्वुर में तेरे, कब हसीनाएं अंकल कहने लगी पता ना चला

जो उदास बैठे हैं

दिल की ना सुन ये फ़कीर कर देगा ,., वो जो उदास बैठे हैं ,नवाब थे कभी

बिल्कुल जुदा है

बिल्कुल जुदा है मेरे महबूब की सादगी का अंदाज, नजरे भी मुझ पर है और नफरत भी मुझ ही से…

सूखे पत्तो सी

सूखे पत्तो सी थी जिंदगानी हमारी . लोगो ने समेटा भी तो जलाने के लिए

मुझमे कितनी रौनके

है दफ़न मुझमे कितनी रौनके मत पूछ ऐ दोस्त….. हर बार उजड़ के भी बस्ता रहा वो शहर हूँ मैं!

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