हर रोज़ चली आती

बिन थके बेधड़क हर रोज़ चली आती हैं..!! ख्वाहिशें इतवार को भी..आराम नहीं करतीं..!!

बहुत ख़ूबसूरती देखी

बहुत ख़ूबसूरती देखी इस ज़माने में.. सब भूल गया जब झाँका तेरी निगाहों में..!”

ना चाहते हुए भी

ना चाहते हुए भी आ जाता है, लबो पर नाम तेरा.. कभी तेरी तारीफों में, तो कभी तेरी शिकायत मे..!

तेरे ज़िक्र भर से

तेरे ज़िक्र भर से हो जाती है मुलाक़ात जैसे.. तेरे नाम से भी इस क़दर इश्क़ है मुझ को..!

तुम्हारे बगैर ये वक़्त

तुम्हारे बगैर ये वक़्त, ये दिन और ये रात जान मेरी… गुजर तो जाते हैं मगर, गुजारे नहीं जाते…

अधूरे हो जाते हैं

मुक़म्मल होने की ख़्वाहिश में हम…!… और भी ज़्यादा अधूरे हो जाते हैं…!!

अजीब सबूत माँगा

अजीब सबूत माँगा उसने मेरी मोहब्बत का कि मुझे भूल जाओ तो मानूँ मोहब्बत है !

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