परेशां हूँ की परेशानी नही जाती, बचपन तो गया पर नादानी नही जाती…
Tag: व्यंग्य
खींच लेती है
खींच लेती है मुझे उसकी मोहब्बत, वर्ना कई बार मिला हूँ उससे आखिरी बार…
पत्थर की प्रतिमा
पत्थर की प्रतिमा के स्वामी, भोग-विलासी जीवन जीते। पर प्रतिमा को गढ़ने वाले, भूँखे-नंगे आँसू पीते।।
सभी के दामन में
सभी के दामन में दाग होते है, ये सुनकर लोग नाराज क्यों होते है… मैंने बिना बाह की कमीज सिलवाई है, सुना है की आस्तीन में सांप होते है..!!!
इतना धीमा कर गया !!
मेरी ना रात कटती है और ना ज़िन्दगी, वो शख्स मेरे वक़्त को इतना धीमा कर गया !!
हर किसी को
हर किसी को नही देता वो हँसाने का हुनर , खुदा नही चाहता ,हर किसी का खुदा होना !
ये मानते है
ये मानते है हम सर झुकाते हैं.. ये जरुरी नहीं तुम ख़ुदा हो जाओ..!!
घर में मिलेंगे
घर में मिलेंगे उतने ही छोटे कदों के लोग, दरवाजे जिस मकाँ के जितने बुलंद होते है।
कुछ चैन पडता है।
माँ बाप को कुछ चैन पडता है। कि जब ससुराल से घर आके बेटी मुस्कुराती है।
ग़म निकलते हैं !
मसर्रतों के खज़ाने ही कम निकलते हैं ! किसी भी सीने को खोलो तो ग़म निकलते हैं !